*विश्व समन्वय साहित्य परिवार वेबसाइट अनावरण एवं विचार/काव्य गोष्ठी संपन्न*
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*डॉ. बलराम की साहित्यिक अभिरुचि प्रशंसनीय - गिरीश पंकज*
मुंबई। विश्व समन्वय साहित्य परिवार के तत्वावधान में विगत शनिवार बसंत पंचमी के पावन अवसर पर गूगल मीट वैश्विक मंच में संस्था के वेबसाइट का लोकार्पण अनुष्ठान व काव्य/विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ संयोजिका मुंबई की विचारक/समाजसेवी शशि दीप द्वारा सभी अतिथियों व पदाधिकारियों की ओर से परंपरागत दीप प्रज्वलन के पश्चात उनकी ही भक्तिभाव से भरे स्वर में, गणपति वन्दना व माँ सरस्वती मंत्रोपचारण की पवित्र ध्वनि से हुआ। उसके पश्चात संस्था का वेबसाइट निर्मित होने से अत्यंत हर्षित व गौरवान्वित शशि दीप ने इसके बारे में जानकारी देते हुए पेज शेयर सुविधा के माध्यम से वेबसाइट https://www.vishvasamanvaya.com/ की संरचना तथा डिजिटल पृष्ठों को, उपस्थित अभ्यागतों के समक्ष प्रदर्शित किया और डिजिटल पटल तालियों की गड़गड़ाहट से झंकृत होने लगा।
तत्पश्चात विचार गोष्ठी के तहत इस साहित्यिक परिवार के शिल्पी डॉ बलराम ने विश्व समन्वय साहित्य परिवार की स्थापना और विकास यात्रा को रेखांकित करते हुए बताया कि वसंत पंचमी 4 फरवरी 1995 को बिलासपुर में समन्वय साहित्य परिवार की गई थी। समन्वय का सूत्र वाक्य है धर्म भारतीयता और जाति मानवता। विश्व समन्वय साहित्य परिवार के रूप में आकल्पन वस्तुत: समन्वय साहित्य परिवार छत्तीसगढ़ का विस्तारीकरण है।
उसके पश्चात प्रसिद्ध साहित्यकार गिरीश पंकज के उद्गार "आज विश्व में असमानता, असहिष्णुता , विषमता व्याप्त है। भाईचारा, सद्भाव और समन्वय की आज महती आवश्यकता है। ऐसे समय में विश्व समन्वय साहित्य परिवार की स्थापना कर डा. बलराम ने अद्वितीय भूमिका निभायी है। यद्यपि वे ऐलोपैथिक चिकित्सक हैं पर उनकी साहित्यिक अभिरुचि प्रशंसनीय है। साहित्यकार ऐसे साहित्य की रचना करें। जिससे संपूर्ण विश्व में समन्वय स्थापित हो।" गोष्ठी में मुख्य अतिथि की आसंदी से बोल रहे थे । कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि अंजनी कुमार सिंह ने समन्वय की अवधारणा को विश्व मानवता के लिए अपरिहार्य निरूपित करते हुए कहा कि कालजयी साहित्यकारों ने समन्वय की भावनाओं का विश्व व्यापी प्रसार -प्रचार किया है। इस दिशा में जयशंकर प्रसाद अग्रणी है , उन्होंने अपने महाकाव्य " कामायनी" में कहा है -
" शक्ति के विद्युत कण जो व्यस्त ,
विकल बिखरें हों हो निरूपाय ।
समन्वय उनका करें समस्त,
विजयिनी मानवता हो. जाय।।"
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए
डा. देवधर महंत ने कहा कि आज से
27 वर्ष पूर्व डा. बलराम ने संस्था की आधार शिला रखी जो आज विशाल और भव्य अट्टालिका बनकर गगनचुंबी स्वरूप में उन्नत होकर "विश्व समन्वय साहित्य
परिवार" के रूप में विश्वव्यापी कलेवर धारण कर रहा हैं। यह एक नितांत गंभीर, उत्कृष्ट और स्तरीय मंच
है जो अपनी रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से सही अर्थों में विश्व बंधुत्व के लिए प्रयासरत है।"
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए, संचालन की बागडोर सम्भाले बिलासपुर की डॉ प्रीति प्रसाद ने अपने सुंदर नपे-तुले शब्दों में कोकिल कंठी, कर्णप्रिय स्वर में कवि सम्मेलन का आगाज किया और देश के विभिन्न हिस्सों से पधारे आमंत्रित कवियों ने अपने उत्कृष्ट रचना एवं शानदार प्रस्तुति से मंच को जीवंत कर दिया। इस अवसर पर आमंत्रित साहित्यकार डॉ मनीष एस. श्रीवास्तव (रायपुर),श्री के के अग्रवाल IPS (रायपुर), श्रीमती मन्जू लता जैन (पन्ना, म.प्र.), श्री मनीष कुमार पाण्डेय (भुवनेश्वर), श्री सत्येंद्र तिवारी (बिलासपुर छ.ग), श्रीमती स्वाती पाठक (लखनऊ), श्रीमती सकीना अफ़रोज़ (कोलकाता), डॉ मकसूद अहमद (खैरागढ़), श्री कृपाल पंजवानी (कोलकाता), श्रीमती रेणु बाजपेयी (बिलासपुर छ.ग.), पल्लवी अग्रवाल (ठाणे मुंबई) अपनी रचनाओं को प्रस्तुत किया। श्रोताओं में विनम्रता व मानवता के पर्याय विशाल संस्था प्रेस क्लब ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के संस्थापक अध्यक्ष आदरणीय सैयद खालिद कैस सर व कुछ परिचित चेहरे दमोह की सविता जैन जी व बिलासपुर की आशा चंद्राकर थी। सभी सहित्य साधकों ने हृदय की आवाज़ से प्रस्तुति दी। यह मंच दो आमंत्रित कवयित्रीयों के लिए काव्य गोष्ठी में शिरकत करने का प्रथम अवसर था जिसे शशि दीप ने संस्था के लिए एक उपलब्धि बताया। सभी ने अपने मधुर आवाज़, भावपूर्ण शब्द चयन एवं प्रभावी प्रस्तुतियों कार्यक्रम को सफल व अविस्मरणीय बनाया। शशि दीप के सफल संयोजन व डॉ प्रीति प्रसाद के कुशल संयोजन की जोड़ी की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई सभी ने अपने अनमोल आशीर्वाद रूपी प्रभु प्रसाद से अनुग्रहित किया।